श्री सुजारामजी महाराज की पार्थिव देह को आज रात्री 11:30 पर मुम्बई एयरपोर्ट से अहमदाबाद लाया जाएगा जहां से फिर सड़क मार्ग से अंतिम दर्शन एवं दाह संस्कार हेतु शिकारपुरा लाया जाएगा। देह के कल 16 अक्टूबर को प्रातः 9 या 10 बजे पहुंचने की संभावना है।
आव-भगत और मान-मनुहार कोई उनसे सीखे। श्री सुजारामजी महाराज को श्री देवारामजी, श्री किशनारामजी एवं वर्तमान गादीपति श्री दयारामजी महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ था। बचपन से ही मानव सेवा मानों उनके रग-रग में थी। हर क्षेत्र में निःशुल्क शिविरों का आयोजन कर मानव सेवा उनका ध्येय था। रक्तदान शिविरों, नेत्र रोग निदान शिविरों, दमा रोग शिविरों एवं बवासिर निदान शिविरों के आयोजन में वे सदा अग्रणीय रहे। सादगी एवं सरलता के धनी श्री सुजारामजी महाराज ने हमेशा सेवा को ही महत्व दिया। आने वाले हर भक्तगण चाहे वह राजा हो या रंक सभी को दर्शनलाभ के बाद भोजन प्रसादी तक करवाने को वे अपनी जिम्मेदारी समझते थे। ऐसे संत श्री सुजारामजी महाराज के देवलोक गमन होने से अपूर्णिय क्षति हुई है। परम पिता परमात्मा उनकी आत्मा को असीम शंाति प्रदान करे।
संक्षिप्त परिचय -
जिला जोधपुर, तहसील लूणी के गांव धुंधाड़ा में श्री शेरारामजी काग के सुपुत्र श्री लाबुरामजी एवं उनकी धर्म पत्नि श्रीमति मांगीदेवी के सुपुत्र सुजारामजी मात्र 10 वर्श की उम्र में ही श्री किशनारामजी के आदेश पर शिकारपुरा आ गए थे।
श्री शेरारामजी काग गांव में प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। जागीरदारी प्रथा की समाप्ति के बाद भूमि सेटलमेंट में उन्होने मुख्य भूमिका निबाही थी। उनके 4 पुत्रों में श्री लाबुरामजी तीसरे थे। एक सभा में श्री किशनारामजी महाराज ने श्री लाबूरामजी से पूछा कि आपके कितने पुत्र हैं तो उन्होने 3 पुत्र होने की बात कही। श्री किशनारामजी महाराज ने ग्राम सभा में कहा कि एक को मंदीर में सेवार्थ दे दो। श्री लाबूरामजी ने बात का मान रखते हुए अपने 3 वर्शीय पुत्र सुजाराम को मंदिर में भेंट करने का मानस बना लिया। फिर धुंधड़ा के ही श्री देवारामजी महाराज के भतीज श्री सांवलरामजी काग की श्रद्धांजली सभा में श्री सुजारामजी को देवारामजी को सुपुर्द कर दिया। उस वक्त श्री सुजारामजी महाराज की उम्र 10 वर्श थी और वे शिकारपुरा आ गए जहां उन्होने शिक्षा-दिक्षा ग्रहण की। वे किशनारामजी महाराज के तीसरे शिष्य थे - प्रथम दयारामजी, दूसरे रघुनाथजी तथा तीसरे सुजारामजी। शिक्षा पूरी होते ही उन्होने समाज सेवा का कार्य हाथ में लिया लेकिन भगवान को उनकी लंबी उम्र मंजूर नहीं थी और 15 अक्टूबर, 2011 को मुम्बई में वे हमसे विदा हो गए किंतु एक प्रेरणा, एक सम्मान के रूप में वे सदा हमारे ह्रदय में रहेंगे।